गन्ने में पोक्का रोग बरसात की शुरुआत के साथ ही पोक्का रोग के लक्षण गन्ने की फसल पर दिखने लगते हैं, जो गन्ने के लिए बेहद हानिकारक हो सकते हैं। इस रोग की शुरुआत मॉनसून के आते ही हो जाती है और यह रुक-रुक कर होने वाली बारिश और धूप के कारण फैलता है। अगर इसका समय पर प्रबंधन और रोकथाम न की जाए तो इससे गन्ने की फसल को काफी नुकसान हो सकता है।
गन्ने में पोक्का रोग
गन्ने की फसल में बारिश के बाद फसलों की वृद्धि होती है, लेकिन साथ ही कई रोग भी उत्पन्न हो सकते हैं। इनमें से एक प्रमुख और खतरनाक रोग है पोक्का रोग, जो हाल के वर्षों में गन्ने की खेती के लिए बहुत घातक साबित हो रहा है। अगर इस रोग का समय पर प्रबंधन और रोकथाम न किया जाए तो इससे गन्ने की फसल को भारी नुकसान हो सकता है। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर ने बताया है कि गन्ने की फसल में पोक्का बोइंग रोग का प्रकोप शुरू हो गया है। किसानों को सतर्क रहने की आवश्यकता है, अन्यथा गन्ने की उपज को भारी नुकसान हो सकता है। यह रोग फ्यूजेरियम नामक कवक से फैलता है और रुक-रुक कर होने वाली बारिश और धूप के कारण फैलता है।
लीफ सीथ, यानी जहां पत्ती और तना जुड़ते हैं, वहां पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियां मुरझाकर काली पड़ जाती हैं और पत्ती का ऊपरी भाग सड़कर गिर जाता है, जिससे गन्ने का विकास प्रभावित होता है। ग्रसित पत्तियों के नीचे का अगोला छोटा और अधिक हो जाता है। पोरियों पर चाकू से कटे निशान भी दिखाई देते हैं। यह रोग उन गन्ने की किस्मों को अधिक प्रभावित करता है जिनकी पत्तियां चौड़ी होती हैं। इससे गन्ना छोटा और बौना हो जाता है।
गन्ना हो जाता है छोटा और बौना
उत्तर प्रदेश शोध परिषद के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इस रोग का लक्षण ऊपर की पत्तियों में स्पष्ट दिखाई पड़ता है। रोग की प्रारंभिक अवस्था में अगोले की पत्तियों पर सफेद धब्बे पड़ते हैं, जिनमें पत्तियां मुड़ने लगती हैं और एक-दूसरे से लिपट कर चाबुक जैसी आकृति बना लेती हैं। अधिक देर तक प्रभाव रहने के कारण पौधे की चोटी में पत्तियां अविकसित रह जाती हैं। पत्तियां सड़कर नीचे गिर जाती हैं। गन्ने का ऊपरी भाग ठूंठ की तरह दिखाई देता है, जिससे गन्ने की लंबाई नहीं बढ़ पाती और गन्ना टेढ़ा और बौना हो जाता है। संक्रमण की तीव्रता अधिक होने पर अगोले की सारी पत्तियां मुड़कर, सुखकर गिर जाती हैं।
गन्ने में पोक्का रोग के लक्षण
इस रोग से प्रभावित गन्ने का पौधा छूने मात्र से टूट जाता है। ऐसा लगता है जैसे किसी धारदार हथियार से काटा गया हो। गन्ने के पौधे की वृद्धि अपने आप रुक जाती है जिससे उत्पादन में काफी कमी आ जाती है। पोक्का रोग की रोकथाम के लिए किसान कार्बेंडाजिम 50 WP का 400 ग्राम को 400 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। यह छिड़काव रोग के प्रथम लक्षण दिखाई देने पर ही करें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP का 800 ग्राम 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें या कासूकीमाईसीन 5 WP और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45 WP की 400 ग्राम दवा को 400 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे 10 से 15 दिन के बाद पुनः दोहराया जा सकता है।

पोक्का रोग से बचाव के उपाय
- कार्बेंडाजिम 50 WP: 400 ग्राम को 400 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP: 800 ग्राम को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- कासूकीमाईसीन 5 WP और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45 WP: 400 ग्राम को 400 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे 10 से 15 दिन के बाद पुनः दोहराया जा सकता है।
जुलाई-अगस्त में इस कीट का खतरा
गन्ने के तना बेधक कीट उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र, बिहार, पंजाब और हरियाणा में मुख्य रूप से हानि पहुंचाता है। इस कीट की सूंडी हानि पहुंचाती है। इस कीट का प्रकोप जुलाई से अक्टूबर तक होता है। सूंडी की पीठ पर 05 बैंगनी रंग की धारियां होती हैं। नवजात पौधे इसके प्रकोप से मुरझा जाते हैं जो आसानी से खींचने पर बाहर नहीं निकलते। प्रभावित पौधों की पोरियों पर छोटे-छोटे गोल छिद्र पाए जाते हैं। पोरियों के अंदर खाए हुए भाग में बुरादे जैसा बीट भरा रहता है और ग्रसित भाग लाल हो जाता है। प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली हो जाती हैं और गन्ने की बढ़वार रुक जाती है। इस कीट के प्रकोप से उपज में 4 से 33 प्रतिशत और चीनी में 0.3 से 3.7 यूनिट की कमी पाई गई है।
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तना छेदक कीट की रोकथाम के उपाय
- संतुलित उर्वरक का प्रयोग: गन्ने में संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें।
- जल निकासी की व्यवस्था: खेत से जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- गन्ने की पत्तियों को निकालें: अगस्त और सितंबर में नीचे की गन्ने की पत्तियों को निकालकर नीचे गिरा दें।
- मिट्टी चढ़ाना और बंधाई: गन्ने को गिरने से बचाने के लिए जून-जुलाई में मिट्टी चढ़ाएं और जुलाई-अगस्त में गन्ने की बंधाई करें।
- ट्राइकोग्रामा स्पीसीज का प्रयोग: जून से सितंबर तक 15 दिनों के अंतराल पर ट्राइकोग्रामा स्पीसीज 1 ट्राइको कार्ड (20000 परजीवी अंडे) को गन्ने के खेत में लगाएं ताकि तना छेदक कीट की रोकथाम हो सके।
इन उपायों को अपनाकर किसान गन्ने की फसल को पोक्का बोइंग रोग और तना बेधक कीट के प्रकोप से बचा सकते हैं और अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
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